ज्ञान और प्रेम से सबका कल्याण | रोशनलाल गोरखपुरिया
धर्म कहता है ऐसे ज्ञान का मूल्य ही क्या, जो रोज बदल जाता हो, जब तक हम पूर्ण को पूर्ण की तरह न जान लें तब तक हम अज्ञानी ह...
- by Life Within Editor
- May 21, 2021
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ज्ञान और प्रेम
प्रकृति परिवर्तन का दूसरा नाम है। आत्मा और परमात्मा शाश्वत सत्य है जो हमेशा विद्यमान रहते हैं। ऐसे ही ये भी शाश्वत सत्य है कि प्रकृति के पाँच महाभूत आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी सदा से हैं और सदा रहेंगे। इसी तरह धर्म भी सनातन है, सदा से है और सदा ही रहेगा।
धर्म कहता है ऐसे ज्ञान का मूल्य ही क्या, जो रोज बदल जाता हो, जब तक हम पूर्ण को पूर्ण की तरह न जान लें तब तक हम अज्ञानी ही रहेंगे।
उपरोक्त बातों को मैं एक ज्ञानवर्धक उदाहरण के माध्यम से आपके सामने रखना चाहूंगा। मैं भी इस ज्ञान से अनभिज्ञ था... मेरी जिज्ञासु प्रवृति ने मुझे इस ज्ञान से अवगत कराया। एक आदमी अंधा है, तो हम सोचते हैं कि शायद उसको अंधेरा दिखाई देता होगा यह हमारा भ्रम है। अंधेरा देखने के लिए भी आँखें चाहिए। आँख के बिना हम अंधेरा भी नहीं देख सकते हैं क्योंकि अंधेरा भी आँख का ही अनुभव है। गीता का
213 बार अध्ययन करने के पश्चात् समझने लगा था कि मैं ज्ञान की कक्षा में सबसे पीछे बैठा हूँ और आधा प्रतिशत ज्ञान हो गया है। किसी संत द्वारा कही गयी गीता सुनने के बाद लगा कि ज्ञान आधा प्रतिशत से बढ़कर एक प्रतिशत हो गया है, किंतु जैसे-जैसे गहरायी में उतरने लगा तो पाया कि जो एक प्रतिशत ज्ञान था वो शून्य हो गया है। जिसे मैं ज्ञान की कक्षा समझ बैठा था दरअसल वो तो अज्ञानता की ही जमात थी। जब इतनी बार शास्त्र को पढ़ने वाले किसी एक व्यक्ति का ये हाल है तो भीड़ में सुनी गयी कथा का कौन क्या मतलब निकाल रहा है और उस ज्ञान को हम क्या कह पाएंगे और कितना ले पाएंगे।
विश्व के महान विचारक आचार्य रजनीश ने अपनी एक किताब ‘मैं कहता आँख न’ में एक जगह लिखा है कि गहरे सत्य व्यक्तियों से कहे जा सकते हैं- व्यक्ति से कहे जा सकते हैं भीड़ से काम चलाऊ बातें कही जा सकती हैं। भीड़ से कभी गहरे सत्य नहीं कहे जा सकते है, क्योंकि जितनी बड़ी भीड़ हो उतनी ही समझ कम हो जाती है, और अगर भीड़ बिल्कुल अज्ञात हो तो समझ को शून्य मानकर चलना पड़ता है... जिस किसी ने इस सत्य को साध लिया उसे है और था का भेद ज्ञात हो गया।
क्रिसमस और इंग्लिश नववर्ष को इसाययित से जोड़कर देखा जाता है। इसाययित की सबसे बड़ी पूँजी दया और सेवाभाव है। ये बात और है कि हमारे देश में राज करने वाले अंग्रेजों ने दयाभाव नहीं दिखाया किंतु इसके लिए इसाययित को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। ठीक इसी तरह मुगलों या चंद आतंकवादियों की वजह से इस्लाम को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इस्लाम शांति का पैगाम देता है। रावण का भाई विभीषण भी था और इसी तरह महाभारत युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण के भाई बलराम भी दुर्योधन के साथ खड़े थे।
भेद करेंगे तो रहस्य खुलेंगे और रहस्य ज्ञान की उस राह पर ले चलेगा जिस राह पर कोई-कोई ही चल पाता है और उस राह पर चलने वाला कोई विरला ही परमात्मा को प्राप्त कर पाता है। जो भूतकाल में हुआ था उसे भुलाकर अब वर्तमान में हम सब मिलकर एक नयी शुरुआत करें और भारत देश को विश्वगुरू के स्थान पर फिर से स्थापित करके देश की अनेकता में एकता की मिसाल कायम करें।
ये तभी मुमकिन है जब हम ज्ञान को साध लेंगे और प्रेम से सबका कल्याण चाहेंगे। यही सच सनातन की परम्परा कहलाएगी।
रोशनलाल गोरखपुरिया
लेखक, आध्यात्मिक विचारक, सामाजिक कार्यकर्ता