बंद दरवाजे खुली खिड़कियाँ | रोशन लाल गोरखपुरिया

हमें अपने अंदर की मानवीय संवेदना को जगाना होगा। मन की आंखे खोलनी होगी। खिड़कियों से हम औरो के घरों में झांकते तो है पर मद...

 बंद दरवाजे खुली खिड़कियाँ


सृष्टि की सबसे सुंदर रचना है मनुष्य। प्रकृति ने जो मनुष्य जीवन दिया है वो परमात्मा को जानने के लिए दिया है। लेकिन भौतिकवाद के इस संसार में मनुष्य अपने जीवन के मूल उद्देश्य परमात्मा को जानना ही भूल जाता है। लेकिन परमात्मा को अगर जानना है तो पहले अपने आप को जानना होगा। जब हम अपने आप को जान लेंगे उस दिन हम परमात्मा को भी पा लेंगे। बंद दरवाजें खुली खिड़कियां कहने का अभिप्राय है कि हमें अपने अंदर की मानवीय संवेदना को जगाना होगा। मन की आंखे खोलनी होगी। खिड़कियों से हम औरो के घरों में झांकते तो है पर मदद के वक्त अपना दरवाजा बंद रखते है। ये संकुचित सोच की निशानी है जिससे हमें बाहर आना होगा। तभी आत्मा और परमात्मा की बातें हमारे मुख से शोभनीय होगी। नहीं तो ये सारी बातें बेमानी है। जो व्यक्ति अपने अंदर जाकर हृदय की गहराई में उतर कर अपनी आत्मा को जान लेता है। फिर उसके लिए संसार में कोई पराया नहीं रहता। जो व्यक्ति ऐसा नहीं करता उसके लिए मन के दरवाजे बंद होते हैं और आँख, कान की खिड़कियाँ खुली रहती हैं। अगर मन के दरवाजे ही बंद होंगे तो भला खिड़कियाँ किस काम की।

आज समाज की हालत कलपुर्जों के कारखानों सी हो गई है। अब तो वो परिवार रहे और ही समाज। परिवार और समाज जहाँ समाप्त हो जाते हैं, वहाँ राष्ट्रीयता गौण हो जाती है। जहाँ राष्ट्रीयता गौण हो जाए तो वहाँ धर्म रहता है और ही ज्ञान। अगर केवल खिड़कियाँ खुली हों और दरवाजे बंद हों तो वो मकान भी रहने के काबिल नहीं रहता। मन के दरवाजे खोलकर रखेंगे तो खिड़कियों से भी ताजी हवा आएगी। शरीर रूपी मकान हँसता, खेलता और मुस्कुराता रहेगा। मैंने एक मारवाड़ी सेठ की कहानी पढ़ी। मारवाड़ी सेठ को कही जाना था तो वो स्टेशन पहुँचा। टिकट अधिकारी से बोला की सर रामपुर की टिकट दे दीजिए। टिकट अधिकारी ने पूँछा कौन सा वाला रामपुर मध्य प्रदेश वाला, उत्तर प्रदेश वाला या बिहार वाला। सेठ ने कहा इसमें पूछने की कोई बात है? जहाँ की टिकट सबसे सस्ती हो वहाँ की दे दो। ये है फायदे का दृष्टीकोण-कहाँ जाना है इससे कुछ लेना-देना नहीं। सेठ जी पहुँचेंगे तो रामपुर ही लेकिन पहुँचेंगे उस रामपुर जहाँ जाना ही नहीं था। अक्सर जीवन में हम ऐसा ही करते है। ऐसे में हम रामपुर तो पहुँच जाएंगे पर राम से ना मिल पाएंगे। सवाल फायदे का है ही नहीं। असली सवाल तो जीवन के आनंद को अनुभव करने का है। आनंद का अनुभव मन के दरवाजें खोलने से ही प्राप्त हो सकता है। ज्यादातर हम ऐसा समझते है कि आंखे देखती है और कान सुनते है। ये कोरी अज्ञानता है। जबकि देखता और सुनता मन ही है। जब ये बात समझ में जाएगी तब मन के दरवाजें अपने आप ही खुल जाएंगे। इसके उपरांत ही हमें आत्मा के ज्ञान का अनुभव हो पाएगा।


रोशन लाल गोरखपुरिया
लेखक | आध्यात्मिक विचारक | सामाजिक कार्यकर्ता 

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