ज्ञान और अज्ञान का आभास | रोशनलाल गोरखपुरिया
शास्त्रों और संतों के द्वारा इस संसार को दुःखों का घर कहा गया है। प्रकृति और परमात्मा की बनाई हुई इस खूबसूरत दुनिया को,...
- by Roshan Lal Agarwal (Gorakhpuria)
- Jun 01, 2021
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ज्ञान और अज्ञान
शास्त्रों और संतों के द्वारा इस संसार को दुःखों का घर कहा गया है। प्रकृति और परमात्मा की बनाई हुई इस खूबसूरत दुनिया को, जो दुःखों का घर कहा जाता है,
शायद इसके पीछे कहने का भावार्थ
ज्ञान नहीं, अज्ञान ही है। आखिर हमसे भूल कहाँ हुई? हमने मानकर जाना जबकि हमें जानकर मानना चाहिए। जब तक हम वस्तु विशेष का ज्ञान नहीं रखेंगे वो वस्तु अनजानी ही रहेगी। ऐसे ही संसार को हमने दुःखों का घर मान लिया। जन्म-मृत्यु, लाभ-हानि, यश-अपयश, ये केवल मन के भाव ही हैं। इसी को हम सुख और दुःख का कारण मान लेते हैं। ये कोरी अज्ञानता ही है।
मुझे कुछ धार्मिक
ग्रंथों को पढ़ने का अवसर मिला। पढ़ने से ऐसे लगा था कि ये संसार अज्ञानियों से भरा पड़ा है। किन्तु जैसे-जैसे मैंने गीता का चिंतन और मनन करना शुरू किया वैसे-वैसे इस चिंतन मनन से यह बात समझ में आयी कि दुनिया में ज्ञानी और अज्ञानी कितने हैं या कौन हैं, ऐसा कहने का अधिकार किसी को किसी ने नहीं दिया। ये बात अगर कोई कह सकता है तो वो केवल अपने आपको ही कह सकता है। गीता का बारम्बार अध्ययन करने से ये ही आभास हुआ कि अज्ञानियों की कतार में मैं सबसे आगे खड़ा हूँ।
एक बार की बात है एक युवक सत्य की खोज पर था। बहुत घूमा, बहुत भटका। वो एक दिन कुएँ से पानी भरकर आ रहा था। दोनों कंधों पर लकड़ी डालकर दो मटकियाँ
बाँधी हुई थीं। लकड़ी टूट गई, मटकियाँ फूट गईं, पानी बह गया और वह नाचने लगा। लोगों ने उससे पूछा तुम्हें क्या हो गया? उसने कहा मटकी क्या फूटी, मेरा अज्ञान मिट गया। पानी सागर का था, सागर में मिल गया। उसी तरह जब हमारे अंदर का अहंकार मिटेगा, अज्ञान मिटेगा और अंधकार मिटेगा तो प्रकाश मिलेगा। इसके उपरांत ही हमें ज्ञान का आभास होगा।
ये अज्ञानता
ही हमारा सबसे बड़ा शत्रु है। इस अज्ञान के कारण हमें कोई भ्रमित करता है और उस भ्रम के कारण से ही हम डर की परिधि में आकर किसी न किसी के पिछलग्गु बन जाते हैं। गुरु गोविन्द सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना करके लोगों को सिंह बनाकर यानि निडर बनाकर धर्म को सीखने और सीखकर कर्म करने की सलाह दी थी, जिसको कार सेवा कहा जाता है। हमने इस बात को कितना माना और कितना जाना यह विचार का विषय है। अगर हम इस बात को समझ जाते तो दुनिया में प्रेम के सिवाए कुछ न होता। जब संसार में प्रेम ही प्रेम होगा तो फिर डर का कोई कारण नहीं रहेगा। 2011 के बाद भारत ने एक नयी करवट ली है। भारतीय होने पर हम जन से गर्व करने लगे हैं। इस गर्व में अहंकार का नामो-निशान नहीं है। हम भारतीय हैं, हमारी जिम्मेदारी औरों से अलग हो जाती है क्योंकि हमारे ग्रंथ आदि हैं और अनादि हैं। ग्रंथों की गहराई को समझकर, गुरुओं के वचनों को मानकर जब स्वार्थ को त्याग देंगे तब हम निडर होकर दुनियां के सामने एक नई इबारत लिख जाएंगे। अर्जुन भी डरकर कर्म से विमुख हो रहे थे किन्तु जब गीता का ज्ञान मिला तो निडर होकर अपनी जिम्मेदारी को निभाया और दुनिया के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कहलाए।
रोशनलाल गोरखपुरिया
लेखक, आध्यात्मिक विचारक,
सामाजिक कार्यकर्ता