प्रार्थना और प्रेम से परमात्मा की प्राप्ति | रोशन लाल गोरखपुरिया

संसार में संसार की वस्तु को पाना जितना कठिन है उससे कहीं ज्यादा आसान है परमात्मा को पाना। परमात्मा को सेकेंड के सौवे हिस...

प्रार्थना और प्रेम से परमात्मा की प्राप्ति



सार एक रहस्य है और इस रहस्य में हम इस कदर उलझ जाते है कि जो सच है उसे हम स्वीकार नही करते और जो झूठ है उसे अपने जीवन के आगोश में इस कदर लपेट लेते है कि उससे ताउम्र बाहर नही आ पाते। जैसे जीवन का सबसे बड़ा सत्य है मृत्यु परंतु उसे हम ऐसे नजरअंदाज कर देते है कि मानो उसका कोई वजूद ही ना हो और जीवन जो क्षणीक है उसके मोह में ऐसे बंध जाते है कि मानो वो सदा रहेगा।


मनुष्य की ऐसी ही अज्ञानताओं ने आज स्वार्थ को सर्वोपरि कर दिया है। परिणामस्वरुप इस आधुनिकता वाले युग में विलासतापूर्ण जीवनशैली के बावजूद आज का इंसान शांति की तलाश में दरबदर भटक रहा है। आप मृत्यु के उपरांत अपने साथ अपने अच्छे  बुरे कर्मों की पूंजी साथ ले जाएंगे। इसके अलावा आप कुछ साथ नहीं ले जा सकते, याद रखें कुछ नहीं। परमात्मा से पाने की लालसा को नही, परमात्मा को पाने की लालसा को प्रार्थना कहते है। शब्दों की गहराई को ना जानने की वजह से हमने एक जैसे शब्दों को एक जैसा ही मान लिया। निवेदन और विनती परमात्मा से पाने के लिए की जाती है। परमात्मा को पाने के लिए प्रार्थना की जाती है जब हम प्रार्थना करने लग जाते है तो आस-पास का आभामंडल प्रकाशपुंज बन जाता है और इस प्रकाशपुंज में पराए भी अपने हो जाते हैं।

संसार में संसार की वस्तु को पाना जितना कठिन है उससे कहीं ज्यादा आसान है परमात्मा को पाना। परमात्मा को सेकेंड के सौवे हिस्से में प्राप्त किया जा सकता है। भगवान श्रीराम को जीवन भर जितनी कठिनाईयों से गुजरना पड़ा। चाहे वनवास हो या रावणवध। भगवान श्रीराम वनवास से रावणवध तक पुरुषों में उत्तम होकर वोे पुरुषोत्तम तो बन गए थे परंतु परमात्मा नहीं। परमात्मा तो उनको उनके त्याग ने ही बनाया था। इस कलयुग की बात करें तो भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध राजपाट के वैभव और ग्रहस्थ जीवन को त्यागकर शांति की खोज में निकल पड़े थे और शांति की इस खोज में अंहिसा का जो संदेश दुनिया को दियाए इस संदेश ने इन दोनो को परमात्मा बना दिया। प्रेम की परिभाषा को समझने के लिए हमें राधा और कृष्ण जी के प्रेम को जानना होगा। जिस कृष्ण को दुर्योंधन की लोहे की मोटी जंजीरें ना बांध पाई और ना मां यशोदा की रस्सी उन्हे रोक पाई परंतु राधा जी के प्रेम के उस धागे ने जीवनभर उनको बांधे रखा। जहां राधा होंगी वहां कृष्ण होंगे। वहीं प्रेम का धागा इस कलयुग में मीरा में साक्षात देखने को मिला। प्रेम में विष पियाए वो भी अमृत हो गया।

आज प्रेम की परिभाषा ने भारतवर्ष को उस शिखर पर पहुंचा दिया जिसका कई वर्षों से इंतजार था।  हमारे प्रधानमंत्री जी ने स्वामी विवेकानंद जी का जिक्र करते हुए एक शेर की कहानी सुनाई। एक शेर के दो बच्चे थे। एक बच्चा बिछड़कर भेड़ों के झुंड़ में चला गया। भेड़ो के साथ रहकर वो शेर का बच्चा अपने आप को भी भेड़ समझने लगा था। एक दिन उस शेर के भाई ने भेड़ों के झुंड़ में अपने भाई को देखकर पूछा कि तुम भेड़ों के झुंड़ में क्या कर रहे हो। फिर उसने कहा कि मैं तो भेड़ ही हूं, तब उसके भाई ने उसे कुंए के पानी में उसकी शक्ल दिखाई। अपनी शक्ल देखने के बाद भेड़ों के झुंड़ में रहने वाले शेर को अपने वजूद का ख्याल आया। यह सिद्ध करता है कि जब हम अपने अंदर झांकेगे तभी हमें अपनी शक्ति का आभास होगा।

इस आलेख का यही उद्देश्य है कि हम जब प्रेम से प्रार्थना करेंगे तभी हमें परमात्मा की प्राप्ति होगी।

 

रोशन लाल गोरखपुरिया
लेखक, आध्यात्मिक विचारक, सामाजिक कार्यकर्ता

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