मतकर बात निराशा की | रोशन लाल अग्रवाल

बूंद डरती है,, सागर में जाएगी तो खो जाएगी। यह डर सच तो है परंतु झूठ से ज्यादा कुछ और नहीं है। खोने में कुछ भी हानि नहीं...

बूंद डरती है,, सागर में जाएगी तो खो जाएगी। यह डर सच तो है परंतु झूठ से ज्यादा कुछ और नहीं है। खोने में कुछ भी हानि नहीं है, क्योंकि खोकर बूंद सागर हो जाएगी। छोटा मिटेगा, बड़ा उपलब्ध होगा जैसे बीज मिटता है तो ही वृक्ष बनता है। मौजूदा परिदृश्य पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि जितना ज्ञान बढ़ता गया ‘तथाकथित ज्ञान, उतना ही आदमी अधार्मिक, उतना ही अहंकारी, उतना ही आदमी जटिल और कठिन होता चला गया। हमें जीवन के संबंध में कुछ भी पता नहीं है।राह के किनारे पड़े पत्थर को भी हम नहीं जानते, लेकिन आकाश में बैठे परमात्मा के संबंध में हम प्रवचन देते है। आज कल राम के नाम पर हो रहा बवाल अज्ञानता की पराकाष्ठा को पार कर रहा है। राम के बगैर सांस लेना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है परंतु सारी दुनिया सांस भी ले रही हैऔर जी भी रही है। ये जीना भी कोई जीना है। ये जीना नहीं, आना और जाना है। राम को जिसने जान लिया फिर कुछ जानना शेष नहीं रहता।

उपनिषद में एक बहुत ही ज्ञानवर्धक कहानी है जो हमें जीवन के मर्म से भिज्ञ्य कराती है। शैतान ने एक बार सारी दुनिया के लोगों को खबर दी कि मुझे कुछ चीजें नीलाम करनी हैं। शैतान की चीजों को लेने के लिए दुनिया में जिन के पास भी सामथ्र्य थी, वे सभी पहुंच गए। उस में कई चीजों पर दाम लगाकर रखे हुए थे जिन का नीलाम होना था। उसमें बेईमानी थी, हिंसा थी, झूठ था, क्रूरता थी, सब चीजें थीं। सब के दाम थे। सब चीजें आदमियों की है सियत के भीतर थी। शैतान की धीरे-धीरे सभी चीजें बिक गई। सिर्फ एक चीज थी निराशा जिस पर बहुत ज्यादा दाम लगा रखे थे। उसको खरीदने की सामथ्र्य किसी में भी नहीं थी। लोगों ने उस शैतान से कहा कि निराशा के इतने दाम लगा रखे है? एक से एक बढ़िया चीजें- हिंसा, कठोरता, दुष्टता, सब सस्ते में बेच दी आपने, निराशा के इतने दाम क्यों लगा रखे हैं?

शैतान ने कहा कि मेरी और कोई चीज असफल हो जाए, निराशा कभी असफल नहीं होती। जिस आदमी को मुझे परमात्मा की तरफ जाने से रोकना होता है, उसको मैं निराशा पिला देता हूं। और सब चीजें असफल हो जाती है। कठोर आदमी नम्र बन जाता है। हिंसक आदमी अहिंसक हो जाता है और सभी तरकीबें गलत साबित हो जाती है। लेकिन निराशा मेरी कभी गलत साबित नहीं होती। क्योंकि निराशा आदमी के कुछ होने का ख्याल ही छोड़ देती है। हिंसक को हमेशा लगता रहता है मैं अहिंसक हो जाउ। बेईमान को लगता है, मैं ईमानदार हो जाउ। लेकिन निराशा का मतलब ही यह है कि जिसको यह लगता है कि अब मैं कुछ भी नहीं हो सकता हूं तो निराशा सब से अद्भूत चीज है मेरे पास, इसको मैं सस्ते में नहीं बेच सकता।

सब चीजें बिक गई, निराशा नहीं बिक सकी, वह शैतान के पास अभी भी है और अभी भी वह एक ही तरकीब से सारी मनुष्य-जाति को आगे बढ़ने से हमेशा रोकता रहता है। बस एक ही दवा उस के पास रह गई है। सब दवाएं आदमियों ने खरीद लीं। और हिंदुस्तान के आदमियों ने काफी चीजें खरीद ली।एक दवा उस के पास रह गई है, निराशा की। और अगर मनुष्य-जाति को कोई चीज रोकेगी, आगे बढ़ने से, तो वह सिर्फ निराशा है और कुछ भी
नहीं। इस निराशा की पराकाष्ठा में जो आशा की दीप सदा जगमगाता रहता है। वो राम रूपी ज्ञान का दीया है। जो उस दीये से साक्षाकार कर लेता है वो फिर निराशा के अंधकार से निकलकर आशा रुपी प्रकाश के साथ सदैव चलायमान रहता है।

किसी कवि ने क्या खूब कहा है-
मतकर बात निराशा की, जीवन संभल की आशा है।
कर्त्तव्य कर्म करते चले जाओ, यही जीवन की परिभाषा है।।
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रोशन लाल अग्रवाल
लेखक | आध्यात्मिक विचारक | सामाजिक कार्यकर्ता

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